Thursday, September 22, 2011

पृथ्‍वी उत्‍पत्ति हिन्‍दू धर्म ग्रंथों के अनुसार





The earth is repeatedly held to be flat. Near Baroda, Gujarat, is situated the Jambudvip institute that was set up to try to prove the Jain and Arya-Vaishnava belief that the Earth is flat.

  • Flat Earth . The earth was universally held to be flat.
  • Earth-Serpent . The earth is supported by a 1000-headed serpent.
  • Wine Sea . The earth floats in a sea of wine
  • Demonic Eclipses . 2 demons swallow the Earth and Moon, leading thereby to eclipses.
  • Trillion-Year-Old Universe . The universe is 26 trillion years old as per the numbers cooked up by some rishi.
  • 700,000 mile Mt. Meru . Mt Meru is 100,000 times higher than Mt. Everest.
  • Dung Medicine . Ayurvedic medicine contains urine and dung of various animals as ingredients.
  • Alcohol Universe . The universe is filled with alcohol.


A whole set of nonsense is propagated in the Vedas and Puranas :
  • The wind drives the stars around the pole according to the Vayu Purana [al B i 241]
  • The Pancavimsa Brahmana wanted to measure the distance between heaven to Earth by imagining 1000 cows placed on top of each other [ S & T xvi.8.1 and xxi.19 ].
  • Sun journeys from east to west in a chariot drawn by 7 horses [ Panda 69 ].
  • Moon came out after the ocean was churned by the devas and demons [ Panda 69 ].
  • 27 stars = 27 wives of the moon [ Panda 69 ].
  • 2 demons Rahu and Ketu swallow the Sun and moon periodically, leading to eclipses.

Thanks

Friday, July 9, 2010

कहाँ लिखा है कि विवाह के समय सीता जी केवल 6 वर्ष की थीं ? an ideal hindu marriage



आदमी एक जिज्ञासु प्राणी है । सैक्स और और विवाद उसे स्वभावतः आकर्षित करते हैं। प्रस्तुत पोस्ट के माध्यम से आदरणीय चिपलूनकर जी ने इसलाम के प्रति ब्लाग जगत के इसी स्वाभाविक कौतूहल को जगा दिया है । आदमी नेगेटिव चीज़ की तरफ़ जल्दी भागता है । मजमा तो उन्होंने लगा दिया है और विषय भी इसलाम है लेकिन ये मजमा पढ़े लिखे लोगों का है ।



इतिहास में भी ऐसे लोग हुए हैं कि जब वे इसलाम के प्रकाश को फैलने से न रोक सके तो उन्होंने दिखावटी तौर पर इसलाम को अपना लिया और फिर पैग़म्बर साहब स. के विषय में नक़ली कथन रच कर हदीसों में मिला दिये अर्थात क्षेपक कर दिया जिसे हदीस के विशेषज्ञ आलिमों ने पहचान कर दिया । इन रचनाकारों को इसलामी साहित्य में मुनाफ़िक़ ‘शब्द से परिभाषित किया गया ।


कभी ऐसा भी हुआ कि किसी हादसे या बुढ़ापे की वजह से किसी आलिम का दिमाग़ प्रभावित हो गया लेकिन समाज के लोग फिर भी श्रद्धावश उनसे कथन उद्धृत करते रहे । पैग़म्बर साहब स. की पवित्र पत्नी माँ आयशा की उम्र विदाई के समय 18 वर्ष थी । यह एक इतिहास सिद्ध तथ्य है । यह एक स्वतन्त्र पोस्ट का विषय है । जल्दी ही इस विषय पर एक पोस्ट क्रिएट की जाएगी और तब आप सहित मजमे के सभी लोगों के सामने इसलाम का सत्य सविता खुद ब खुद उदय हो जाएगा ।


क्षेपक की वारदातें केवल इसलाम के मुहम्मदी काल में ही नहीं हुई बल्कि उस काल में भी हुई हैं जब उसे सनातन और वैदिक धर्म के नाम से जाना जाता था। महाराज मनु अर्थात हज़रत नूह अ. के बाद भी लोगों ने इन्द्र आदि राजाओं के प्रभाव में आकर वेद अर्थात ब्रहम निज ज्ञान के लोप का प्रयास किया था ।


जब वे लोग वेद को पूरी तरह लुप्त न कर सके तो उन्होंने एक वेद के तीन टुकड़े कर दिये और कुछ वेदज्ञों के अनुसार तो बाद में अथर्ववेद पूरा का पूरा ही मिला दिया । उनमें ऐसी बातें भी मिला दी गयीं जिन्हें हरेक धार्मिक आदमी देखते ही ग़लत कह देगा । उदाहरणार्थ -}
प्रथिष्ट यस्य वीरकर्ममिष्णदनुष्ठितं नु नर्यो अपौहत्पुनस्तदा


वृहति यत्कनाया दुहितुरा अनूभूमनर्वा
अर्थात जो प्रजापति का वीर्य पुत्रोत्पादन में समथ्र है ,वह बढ़कर निकला । प्रजापति ने मनुष्यों के हित के लिए रेत ( वीर्य ) का त्याग किया अर्थात वीर्य छौड़ा। अपनी सुंदरी कन्या ( उषा ) के ‘शरीर में ब्रह्मा वा प्रजापति ने उस ‘शुक्र ( वीर्य ) का सेक किया अर्थात वीर्य सींचा । { ऋग्वेद 10/61/5


‘यजमान की स्त्री घोड़े के लिंग को पकड़ कर आप ही अपनी योनि में डाल लेवे।‘


{ यजुर्वेद 23 /20 भाषार्थ श्री महीधर जी }


इस तरह के सभी मन्त्रार्थ बहुत हैं । केवल संकेत मात्र अभीष्ट था । सो मजबूरन अनिच्छापूर्वक लिखना पड़ा ।


संभोगरत खिलौनों को पवित्र हस्तियों के नाम से इंगित करना आप जैसे बुद्धिजीवियों को ‘शोभा नहीं देता । गन्दगी को फैलाने वाला भी उसके करने वाले जैसा ही होता है । हमारे ब्लॉग पर आपको ऐसे गन्दे चित्र न मिलेंगे । ब्लॉग लेखन का मक़सद सत्य का उद्घाटन होना चाहिये न कि अपनी कुंठाओं का प्रकटन करना ।


हज़रत साहब स. के बारे में फैल रही मिथ्या बातों का खण्डन होना चाहिये ऐसा लिखकर आपने हमारा ध्यान इस ओर आकृष्ट किया । इसके लिए आप साधुवाद के पात्र हैं। दुष्टों ने हज़रत साहब के साथ ही धृष्टता नहीं की बल्कि करोड़ों लोगों के मन मन्दिर के देवता और मेरे आकर्षण केन्द्र श्री रामचन्द्र जी के साथ भी यही कुछ किया है ।


बाल्मीकि रामायण ( अरण्य कांड , सर्ग 47 , ‘लोक 4,10,11 ) के अनुसार विवाह के समय माता सीता जी की आयु मात्र 6 वर्ष थी ।


माता सीता रावण से कहती हैं कि


‘ मैं 12 वर्ष ससुराल में रही हूं । अब मेरी आयु 18 वर्ष है और राम की 25 वर्ष है । ‘


इस तरह विवाहित जीवन के 12 वर्ष घटाने पर विवाह के समय श्री रामचन्द्र जी व सीता जी की आयु क्रमशः 13 वर्ष व 6 वर्ष बनती है ।


कोई आदरणीय व्यक्तित्व चाहे वह कुछ लोगों की नज़र में केवल मिथक ही क्यों न हो ? तो भी उसके बारे में किसी को अनुचित बात कहने की अनुमति दी जा सकती है । मैं भी एक अर्से से अपने दिल में यह ख्वाहिश लिये था कि कहीं से कोई उठे तो हम उसका साथ दें ।


इसी तरह की कुछ और भी सदाकांक्षाएं हैं । भविष्य में भी जब कभी कोई बंधु आप जैसा हौसला दिखायेगा उसकी पीठ थपथपाने और साथ देने के लिए हम इसी भांति अवश्यमेव उपस्थित होंगे । कुछ जगहों से कुछ दीगर सज्जन भी अपना हौसला तौल रहे हैं । उनसे हम कहना चा हेंगे कि




मेरा मक़सद


वेद या ऋषि परम्परा का विरोध करना मेरा मक़सद नहीं है । और न ही आर्य जाति के मान को ठेस पहुंचाना मेरा उद्देश्य है । मैं खुद इसी महान जाति का अंग हूं क्योंकि मैं पठान आर्य ब्लड हूं । इसलिये भी इसकी उन्नति में बाधक तत्वों को दूर करना मेरा परम कर्तव्य है ।


मैं वेद में आस्था रखता हूं और पैग़म्बर हज़रत मुहम्मद साहब सल्लल्लाहु अलैहि वसल्लमम की तरह महर्षि मनु को भी सच्चा ऋषि मानता हूं लेकिन वेद में भी उसी प्रकार क्षेपक मानता हूं जिस प्रकार स्वामी जी ने मनु स्मृति आदि में माना है ।


वर्ण व्यवस्था , नियोग और नरमेध आदि यज्ञों को वेदों में क्षेपक और आर्य जाति की उन्नति में बाधक मानता हूं । पूर्व कालीन ऋषियों के अविकारी वैदिक धर्म को पाना और जन जन तक पहुंचाना ही मेरे जीवन का उद्देष्य है । वैदिक धर्म के विकारों को दूर करने के बाद वैदिक धर्म और इसलाम में कोई मौलिक मतभेद बाक़ी नहीं बचता । दोनों का स्रोत एक ही अजन्मा परमेश्वर है।


इसलाम एकमात्र विकल्प वर्णव्यवस्था का लोप बहुत पहले हो ही चुका है जिसे लाख कोशिशों के बावजूद भी वापस न लाया जा सका। साम्यवाद भी नाकाम होकर विदा हो चुका है ।


पूंजीवाद के ज़ालिम पंजे में फंसकर विश्व जन जिस तरह त्राहि त्राहि कर रहे हैं उसने इसलाम की प्रासंगिकता को पहले से कहीं ज़्यादा बढ़ा दिया है ।


इसलाम अकेली ऐसी जीवन-व्यवस्था है जो व्यक्ति और समाज , परिवार और राष्ट्र को जीवन की हरेक समस्या का सरल और व्यवहारिक समाधान देती है ।


इसका आधार पवित्र कुरआन है । जो पहले दिन से लेकर आज तक सुरक्षित है । बराबरी और सहयोग इसलामी समाज की ख़ासियत है । इसकी उपासना पद्धति आसान है । जो बिना किसी ख़र्च के बहुत कम समय में संपन्न हो जाती है ।


इसकी आर्थिक व्यवस्था ब्याज मुक्त है । इसलाम को उसकी सम्पूर्णता के साथ न मानने वाले विकसित देष भी इसलामी बैंकिंग को अपना रहे हैं । इसके माध्यम से मिलने वाली मुक्ति को हरेक आदमी प्रत्यक्ष जगत में खुली आंखों से देख सकता है ।


समस्त चक्रों के जागरण और सबीज निर्बीज समाधि के बाद भी आदमी जिस कल्याण से वंचित रहता है वह इसलाम के माध्यम से तुरन्त उपलब्ध होता है । यह न सिर्फ़ आदमी का बल्कि उसके पूरे परिवार और समाज का कल्याण करता है ।


आओ मिलकर चलें कल्याण की ओर


जब तक भारतीय समाज के सामने वैदिक धर्म और के एकत्व का उद्घाटन हो तब तक भी हम समान मूल्यों पर सहमत होकर स्व और के कल्याण हेतू काम कर सकते हैं ।